परिचय

गलत आहार-विहार को करने के बाद जब वात एवं रक्त दोष दोनों दूषित हो जाते है तो वातरक्त रोग की उत्पति होती है | यह अधिकतर पैर की बड़ी संधि में ज़्यादातर होता है इसके इलावा उँगलियों में ,घुटनो , टखनों और हाथ की उंगलियों में भी हो जाता है | गम्भीर रूप वाला वातरक्त कई जोड़ो को एक साथ ही नुकसान पहुंचा सकता है इसके लक्षण आते जाते रहते है | लेकिन जिस जगह पर इसकी वजह से सूजन पैदा होती है | वहा के ऊतकों को प्रभावित करता है यह अधिकतर पुरषो में देखने  को मिलता है इसके अलावा महिलाओं में रजोनिवृति के बाद देखने को मिलता है |

कारण

  1. रक्त में यूरिक एसिड का बढ़ जाना
  2. मोटापे की वजह से
  3. मूत्रवर्धक दवाओं के अधिक प्रयोग से
  4. मांस या  मछली और समुद्री भोजन खाने से क्योंकि इनमें प्यूरीन की मात्रा पायी जाती है जो की यूरिक एसिड  को उत्पन करने लगता है
  5. मादक पदार्थो को ग्रहण करने से
  6. गुर्दो के कार्य करने की क्षमता का कम  होना
  7. आनुवंशिक रूप से

वात रक्त के तीन भेद

वात रक्त तीन प्रकार का होता है

  1. उत्तान
  2. गंभीर
  3. उभयाश्रित वातरक्त

1. उत्तान वातरक्त त्वचा और मांस आश्रित होता है |

2. गंभीर वात रक्त मज्जा आदि धातुओं तक व्यापत होता है |

उतान

  • उतान वातरक्त में खुजली जलन पीड़ा और अंग संकोच होता है त्वचा श्याम या रक्त वर्णी हो जाती है
  • गंभीर  वातरक्त में  जकड़ाहट कठिनता और अत्यंत पीड़ा होती है |
  • उभयाश्रित वातरक्त का लक्षण

    • जब उतान और गंभीर दोनों तरह के वातरक्त के लक्षण मिल जायें, उसे उभयाश्रित वातरक्त कहते हैं |
    • इसमें वायु सन्धियों और अस्थियों में जाकर उन्हें पीड़ा,जलन पैदा करता है | यह वायु रोगी को पंगु या लंगड़ा बना देती है | इसमें पीड़ा और जलन होती है |

    दोषों के अनुसार वातरक्त के भेद

    • वातरक्त-वात पित्त कफ और रक्त की अधिकता से या दो दोषों के मिलने से होता है |

    1. वातज वातरक्त के लक्षण:

    • जब वात दोष के कारण वातरक्त होता है तो सिराओं में खिंचाव, पीड़ा और चुभन होती है | अंगों में दर्द और जकड़न अधिक होती है | शोथ में कालापन और रूक्षता रहती हैं और यह बढ़ता-घटता रहता है |

    2. पित्तज वातरक्त के लक्षण:

    • पित्तज प्रवल वातरक्त में वेदना, जलन, मूर्च्छा, पसीना, पाक, चीरने जैसी पीड़ा आदि होते हैं |

    पित्तज प्रवल वातरक्त में वेदना, जलन, मूर्च्छा, पसीना, पाक, चीरने जैसी पीड़ा आदि होते हैं |

    • शरीर में गीले कपड़े से ढका होने जैसा प्रतीत होना, मन्द वेदना और भारीपन होता है |

    द्वन्द्वज और त्रिदोषज वातरक्त के लक्षण:

    • दो-दो या तीन तीन दोषों के संसर्ग के कारण यह वातरक्त होता है | लक्षणों को देख कर इन्हें द्वन्द्व और त्रिदोषज समझना चाहिए

    लक्षण

    1. पैरो की उँगलियों में जलन होती है
    2. जोड़ो में सूजन आना शुरू हो जाता है
    3. सुई जैसे चुभन होती है
    4. अंगूठे की त्वचा का रंग बदल जाते है वह लालिमा युक्त हो जाता है
    5. रक्त दोष की वजह से विकृत स्थान पर खुजली होने लगती है
    6. रक्त दोष की वजह से विकृत स्थान पर खुजली होने लगती है
    7. 7. संधियों में टेढ़ापन होना
    8. 8. किसी वस्तु विशेष का विकृति वाली जगह को छू जाने पर असहाय पीड़ा का होना

    चिकित्सा

    • इसमें सर्वप्रमुख वात एवं रक्त दोष को सही करना चाहिए उसके लिए पित्त शामक एवं रक्तशोधक द्रव्यों का सेवन करना चाहिए शुरू में यह बिना किसी उपचार के ठीक हो जाता है लेकिन यदि यह दोबारा से होता है तो अधिक विशाल रूप में प्रकट होता है Planet Ayurveda में इसके उपचार के लिए निम्नलिखित औषधियाँ है

    1. गिलोय कैप्सूल्स(Giloy Capsules)

    • चरक ने इस औषधि का वर्णन संधान महाकषाये में किया है जिसका मतलब जोड़ो के भीतर संधान करना है इसके इलावा यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है स्त्रोतों को खोलने व् ज्वर को दूर करने का कार्य करता है |

    मात्रा : २ गोलियां दिन में दो बार पानी के साथ लें.

    २ कैशोर गुग्गुल (Kaishor Guggul)-

    • यह एक शास्त्रोक्त औषधि है जिसमें आँवला , विभीतक , हरीतकी ,गुग्गुल ,विडंग आदि यह मुख्य रूप से रक्त को साफ़ करने का कार्य करती है जिस की वजह से खुजली एवं लालिमा में आराम मिलता है

    मात्रा : २ गोलियां दिन में दो बार पानी के साथ लें.

    ३ नवकार्षिक चूर्ण (Navkarshik Churna)

    • वातरक्त में इस चूर्ण का प्रयोग किया जाता है इसमें विशेष रूप से त्रिफला , वचा , नीम , मंजिष्ठा , कुटकी,अमृता, और दारुहल्दी डाले गए है जो की रक्त को साफ करने के साथ साथ दर्द को भी दूर करते है |

    मात्रा : ३ से ५ ग्राम चूर्ण पानी के साथ दिन में दो बार लें.

    Author's Bio: 

    DR. Vikram Chauhan, MD - AYURVEDA is an expert Ayurvedic practitioner based in Chandigarh, India and doing his practice in Mohali, India. He is spreading the knowledge of Ayurveda Ancient healing treatment, not only in India but also abroad. He is the CEO and Founder of Planet Ayurveda Products, Planet Ayurveda Clinic and Krishna Herbal Company. For more info visit our website: http://www.planetayurveda.com